एक माँ के अश्कों से
नौ महीने पूरे तुझे अपनी कोख़ में है पाला।
जन्म देने से पहले तेरी ज़िन्दगी है संभाला।
पा के तुझे जो मानो पीया अमृत का प्याला।
आज तू ने ख़ुद को है कितना बदल डाला !
नहीं पूछता है आज कोई हाल मेरा…
कहाँ खो गया है तू लाल मेरा…
मेरे आँखों ने किये कई रतजगे जो तुम्हारे लिये।
सीने से लगाये भूखी रही ख़ुद को दिलासा दिये।
ज़िंदगी को दाव पे लगा डाली बिन परवाह किये।
ठोकड़ें खायी पर तेरे वास्ते ज़िन्दगी है मैं ने जीये।
नहीं पूछता है आज कोई हाल मेरा…
कहाँ खो गया है तू लाल मेरा…
इक माँ एक साथ है पालती कई औलाद सारी।
पर इक औलाद को क्यूँ लगती है बूढ़ी माँ भारी?
तेरा बचपन आज भी बुलाता है मुझे-“माँ प्यारी!”
क्यूँ तुझे लगने लगी है तेरी पत्नी माँ से भी न्यारी?
नहीं पूछता है आज कोई हाल मेरा…
कहाँ खो गया है तू लाल मेरा…
इस दुनिया में तेरे सिवा अब कोई नहीं है हमारा।
अब तू ही है मेरे बुढ़ापे का फ़क़त एक ही सहारा।
ख़ुदा सलामत रखे बुरी नज़रों से बुढापा तुम्हारा।
अपनी आँखों से न देखूँ तुझ में ये मंज़र दुबारा।
नहीं पूछता है आज कोई हाल मेरा…
कहाँ खो गया है तू लाल मेरा…