एक बेटी की अनुभूति पापा के लिए
मैं जब मां की कोख में आई थी
पापा के चेहरे पर खुशी छाई थी
सबकी बेटे के लिए फरमाइश थी
बेटी चाहिए पापा की ख्वाहिश थी
मेरे जन्म लेने पर सभी उदास थे
सिर्फ मेरे पापा ही मेरे पास थे
पापा ने अपनी खुशी यूं बांटी थी
अपनी क्षमतानुसार मिठाई बांटी थी
सारे परिवार ने पापा से नाराजगी दिखाई
बेटे की चाहत थी फिर बेटी क्यों आई
मां को मेरे पैदा होने का दोषी बताया
बेटा पैदा ना होने का दुख जताया
मां पापा को घर से निकाल दिया
मेरे होने का उनसे यूं बदला लिया
धीरे धीरे मैं बड़ी होने लगी
तरह तरह के सपनों में खोने लगी
एक दिन जब मैंने खिलौना मांगा था
हंस कर पापा ने साईकल पर झोला टांगा था
शाम को पापा खिलौना लेकर आये थे
पता नही क्यों वापिस पैदल ही आये थे
मेरे जन्मदिन पर मुझे दिया एक गहना था
पापा ने उस दिन भी पुराना कुर्ता पहना था
मुझे खुश रखने की भरपूर कोशिश करते थे
मुहं छिपा कर चुपके छुपके रोया भी करते थे
अब मैं भी पापा के प्यार को समझने लगी हूँ
अब फरमाइश नही करती बस पढ़ने लगी हूँ
एक दिन पढ़ लिख कर बड़ा अफसर बनना है
पापा की खुशियां लौटा सकूँ बस यही सपना है