एक बालक की अभिलाषा
एक बालक से मैंने पूछा तुम बड़े होकर क्या
बनना चाहोगे ?
उसने कहा मैं एक राजनेता बनना चाहूंगा ,
क्योंकि उसके लिए कोई पढ़ाई लिखाई का
झंझट नहीं ,
बेकार के आदर्श एवं संस्कार पालन की
बाध्यता नहीं,
अपनी मर्जी के मालिक रहो किसी के
गुलाम नहीं ,
अपने जैसे लोगों की टोली में मस्त रहो
अकेले नहीं ,
पढ़ाकू बनके क्या मिलेगा अच्छी नौकरी?
अच्छी पदवी ? समाज में अच्छा स्थान ?
पर नेता बन के जो मिलेगा वह तुमने कभी
सोचा नहीं होगा ,
तुम्हारे पीछे तुम्हारे चाहने वालों अंध भक्तों की
भीड़ होगी ,
पुलिस , प्रशासन , और न्यायपालिका तुम्हारे
इशारे पर चलेगी ,
अपने बाहुबल और जनता की आवाज बनके तुम कुछ भी सिद्ध कर सकते हो,
गलत को सही , सही को गलत बनाकर अपना
उल्लू सीधा कर सकते हो ,
ऊंची पदवी पर बैठे तुम्हारे पढ़ाकू साथी सब
तुम्हारे अधीन होंगे ,
तुम्हारे इशारे पर नाचेंगे,
अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए तुम जैसा चाहोगे
वो वैसा करेंगे ,
तुम अपने लिए तो क्या ,
अपनी सात पीढ़ी के लिए संपत्ति की
व्यवस्था कर जाओगे ,
मरणोपरांत भी स्मारक बनकर
अपना नाम अमर कर जाओगे ।