पिछले पन्ने भाग 1
एक बार हमारे स्कूल से सटे ठीक बगल गाॅंव में जिला से परिवार नियोजन का प्रचार-प्रसार करने के लिए स्वास्थ्य विभाग का एक दल आया। जहाॅं प्रोजेक्टर के द्वारा पर्दे पर परिवार नियोजन से संबंधित फिल्म दिखाई जा रही थी। जंगल के आग की तरह हेमा मालिनी ,रेखा,जीनत अमान को फिल्म में दिखाये जाने की काल्पनिक सूचना हॉस्टल तक पहुॅंच गई। उस समय टीवी प्रचलन में नहीं था और फिल्म शहर के सिनेमा हॉल या कहीं-कहीं मेला में ही देखने की सुविधा थी। यह वह समय था,जब आम लोगों में फिल्म के प्रति जबरदस्त आकर्षण था। फिल्म में पसंदीदा हिरोईन को दिखाए जाने की सूचना मिलते ही सभी छात्र इतने उत्साहित हो गए थे कि किसी आदेश का परवाह किये बिना हॉस्टल के अधिकांश छात्र फिल्म देखने के लोभ में पूरे जोश के साथ वहाॅं पहुॅंच गए। वहाॅं पहले से ही लोगों की ठसाठस भीड़ थी। एक जीप के आगे में प्रोजेक्टर लगा था और सामने पर्दे पर फिल्म प्रदर्शित की जा रही थी।एक अजीब संयोग था कि छात्रों के पहुॅंचते ही पर्दे पर एक लड़की धन्यवाद देने की मुद्रा में दिखाई दी और इसी के साथ प्रोजेक्टर बंद हो गया। इसके बाद स्वास्थ्य कर्मियों का दल जल्दी जल्दी जाने की तैयारी करने लगे। यह सब देखते ही सभी छात्रों ने जोर-जोर से हल्ला मचाना शुरू कर दिया और फिर से फिल्म दिखाने की जिद्द करने लगे, लेकिन इसके लिए स्वास्थ्य कर्मी एकदम तैयार नहीं थे। इस पर सभी लड़के पूरे आक्रोशित हो गये। हम लोगों को मूर्ख समझता है क्या ? इतना रिस्क लेकर चुपचाप हाॅस्टल छोड़कर रात में इन लोगों का थोपड़ा देखने नहीं आए हैं। हम लोग बिना फिल्म देखे इन लोगों को एक कदम भी आगे नहीं टसकने देंगे। हमलोग भी आज देखते हैं कि कौन माॅं का लाल है,जो यहाॅं से अभी जाने की हिम्मत करता है। फिर क्या था,बहसा बहसी के बाद थोड़ी देर में ही वह जगह कुरुक्षेत्र बन गया। अनियंत्रित छात्र क्रोध में गाली गलौज के साथ ही पत्थरबाजी पर उतर आये थे। कुछ स्थानीय लोगों के द्वारा बीच बचाव करने पर ही छात्रों का आक्रोश थोड़ा कम हुआ। इसके बाद सभी छात्र हारे हुए जुआरी की तरह अपना मुंह लटकाए आने वाली विपत्ति की आहट महसूस करते हॉस्टल की ओर विदा हुए और परिवार नियोजन प्रचार दल अररिया।शायद,आज छात्रों का दुर्भाग्य साथ छोड़ने वाला नहीं था।छात्रों के हॉस्टल पहुॅंचने से पहले ही छात्रों के इस करतूत की संपूर्ण सूचना हेड मास्टर साहब श्री दामोदर कुंवर के पास पहुॅंच चुकी थी। फिर क्या था ? रात का अंधेरा और छुपते छुपाते छात्रों के शरीर का कोई भी अंग। दौड़ा दौड़ा कर अंधेरे में छात्रों की जमकर धुलाई हुई। हेड मास्टर साहब का तो उस क्षेत्र में इतना आदर और सम्मान था कि भूल से भी कभी किसी अभिभावक द्वारा उनके द्वारा छात्रों को की गई निर्मम पिटाई की भी शिकायत स्कूल में नहीं की जाती थी। उस रात मार खाने के बाद अपने बदन को सहलाते सभी पीड़ित छात्र हॉस्टल में खाना नहीं खाकर विरोध में हड़ताल का संकेत देते हुए बने हुए खाना को बर्बाद करने का मन बना लिया था,लेकिन हेड मास्टर साहब का रौद्र रूप देखकर ही हड़ताल का भूत उतर चुका था और चुपचाप सभी छात्र खाना खाने बैठ गए। इस घटना के कई दिनों बाद तक हॉस्टल में श्मशान जैसी शांति बनी रही थी।