एक बादल के टुकड़े पर कबूतर से
घर है
घर का सामान है
घर का मालिक और
घर का मेहमान कहां है
घर के दरवाजे, खिड़कियां,
रोशनदान
घर के अंदर जाने के
सब रास्ते बंद हैं
घर की छत की तरफ जाती
सीढ़ियों पर तो
बरसों से ताले ही पड़े हैं
धूल से पटी पड़ी है
यह
लगता है
सब घर के अंदर बंद हैं
जो भी घर देखो
वह बन गया है
आज के दौर में
एक कैदखाना
मानसिकता भी इन घरों में
रहने वालों की
विकृत
एक कैदी और
एक गुलाम सी हो गई है
धूप, हवा इन्हें लगती नहीं
किसी से यह बोलते नहीं
हंसते नहीं
रोते नहीं
खेलते नहीं
कूदते नहीं
सड़कों में कहीं
चहलकदमी करने के लिए
बाहर निकलते नहीं
अपने ऊपर ध्यान केन्द्रित है
सबका
चिड़िया के लिए भी
आंगन में
दाना पानी रखते नहीं
उजड़ा पड़ा रहता है
अपने ही घर का
बाग बगीचा
कांटों को छांटते नहीं
फूलों को यह बीनते नहीं
कोई भी प्यार का दाना
यह चुगते नहीं
कोई भी प्रेम का बोल
यह बोलते नहीं
बस जरूरत पड़ती है
तो निकलते हैं
अपने घरों से बाहर
एक बादल के टुकड़े पर
कबूतर से
पंख सिकोड़े बैठे दिखते हैं
पल तो पल को
जरा सी आहट पाते ही
आंखें मूंदकर
डरकर
भयभीत होकर
फिर फुर्र से उड़कर
गायब हो जाते हैं
दुबक जाते हैं
पंख सिकोड़कर
बैठ जाते हैं
एक कोने में
अपने घर आंगन के।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001