एक बह्र -दो गज़ल
एक बह्र दो रंग
#1गज़ल
तवारी मश्क़ ए सुखन
सादर समीक्षार्थ एक प्रयास
12122 12122
रदीफ ठहरा
काफि़या मुहाल
कलम का मेरे , कमाल ठहरा
न फिर किसी का , ख़याल ठहरा
न अजनबी बन, यहाँ पे आना
यहाँ पे क़ौमी ,बबाल ठहरा
नकाब रुख पे ,जो डालते हो
हया पे आके ,सवाल ठहरा
न देश में अब, अमन मिलेगा
वबा का कैसा ,ज़बाल ठहरा ।
वजूद अपना ,नहीं दिखेगा
अगर लहू का ,उबाल ठहरा
पाखी
#2गज़ल
सवाल मेरे, भुला दिए हैं
नज़र से या फिर ,गिरा दिये हैं।1
मुझे किसी से,नहीं शिकायत
अज़ीज़ मेरे ,मिटा दिये हैं।2
कथा तुम्हारी,व्यथा हमारी
कलम ने कैसे, लिखा दिये हैं ।3
रहा हमारा ,सफ़र सुहाना
उधार तेरा, चुका दिये हैं।4
अभी मुहब्बत ,अभी लड़ाई
वफा़ को मेरी, सज़ा दिये हैं।5
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पाखी