एक बस तुम ही
एक बस तुम ही
मेरी बैषाखियां बन कर
मुझे सहारा देने वाली
मेरे पथ के कांटो को
पलकों से चुनने वाली
एक बस तुम ही तो थी।
बनकर रक्षक मुसीबतों में
रक्षा मेरी करने वाली
हर किसी दुष्ट नजर से
मुझको तुम बचाने वाली
एक बस तुम ही तो थी।
आग के अंगारों पर
आेस की बूंदे बिछाने वाली
गरमी की उमस में
दृगों से प्यास बुझाने वाली
एक बस तुम ही तो थी।
-ः0ः-
नवल पाल प्रभाकर