एक फूल की हत्या
बहारों पर हक है
केवल बागों का
न कि तुम्हारे घर की
चारदीवारी, कोनों और
कमरों का
कैसे कैसे बेहूदे शौक पाल रखे हैं तुम
पढ़े लिखे और सभ्य लोगों ने कि
एक फूल को तोड़ते हो
उसे उसके पौधे, पेड़ की टहनी या
उसके स्थाई निवास स्थान से जुदा करते हो
उसका दिल तोड़ देते हो
उसके जीवन की खुशियां लूट लेते हो
उसकी महकती फूलों की बगिया उजाड़ देते हो
उसकी हत्या कर देते हो
उसको मौत की गहरी नींद सुला देते हो
उस फूल को फिर एक गुलदस्ते में
सजाकर खुश होते हो
खुद के घर की रौनक बढ़ाते हो
उसकी सुंदरता को निहारते हो
उसकी कोमलता को स्पर्श करते हो
उसे तोड़ते हो, मरोड़ते हो, कुचलते हो
वह मुर्झाकर सूख जाता है तो
उसे बेरहमी से कूड़े में फेंक देते हो
किस तरह का समाज है यह
कहीं से कोई संजीदा नहीं
संवेदनशील नहीं
गंभीर नहीं
खुदगर्ज सब इतने कि
अपने सिवाय किसी अन्य के
विषय में सोचते ही नहीं
यह किसी के दर्द या
दर्द की इंतहा को क्या समझेंगे
जब यह सब कुछ बिखेरते हैं
कुछ भी जिंदगी भर
संजोते नहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001