एक प्रेम सूफियाना सा।
ना दर्जा देना प्रेमिका का,
ना करना आपसे विवाह है,
आपके प्रति चंद अल्फ़ाज़ मेरे,
इस अनकहे प्रेम की राह है,
ना बंधन है कोई नाम का,
ना जग की कोई रीत निभाई,
साक्षी है ये सृष्टि सारी,
कि आप से मैंने प्रीत लगाई,
ना पाना कोई जवाब है,
ना मन में है कोई सवाल,
टूटते-जुड़ते संपर्क के बीच,
रखिएगा आप अपना ख़्याल,
क्या जाने ये उलझन कैसी,
जाने ये कैसा रश्क़ है,
इज्ज़त तो बाइज्ज़त की है मैने,
कब कहा कि आपसे इश्क़ है,
ना नीयत में है ख़राबी कोई,
ना मन में है कोई भ्रम,
शब्दों में शामिल सम्मान है,
दिल में सूफ़ियाना प्रेम,
ना सिलसिला रहा मुलाकातों का,
ना ही कोई पुरानी पहचान है,
कायम हैं अल्फ़ाज़ इस अंदाज़े पे मेरे,
कि आप एक अच्छी इंसान हैं,
हकीकत है कि एक दिन,
सब गुम हो जाएगा हवाओं में ,
फिर भी जब तक रहूंगा मैं ,
आप रहेंगी मेरी दुआओं में।
कवि-अंबर श्रीवास्तव