एक प्रश्न
एक प्रश्न- कोमल काव्या
मैं तो रातों को जागना छोड़ भी दूँ लेकिन
तुम मेरी यादों मे आना छोड़ दोगे क्या ?
ये मैंने कब कहा की मेरी ज़िंदगी का हिस्सा हो तुम
वो जो सिंडरेला की कहानी मे था न एक राजकुमार
बस कुछ वैसा ही तो किस्सा हो तुम
मैं बहार नहीं न बरखा हूँ बस एक बूंद हूँ शबनम की
बेनाम अनजान हैरान उपज हूँ एक अलग मौसम की
जो कर दूँ इजहारे मोहब्बत
तो इस कहानी को नया मोड दोगे क्या ?
मैं तो रातों को जागना छोड़ भी दूँ लेकिन
तुम मेरी यादों मे आना छोड़ दोगे क्या ?
अच्छा चलो , करती हूँ तुमसे एक वादा
तुम्हारा खयाल भी अपपने खयालों मे नहीं लाऊँगी
न तुमसे मिलने आऊँगी न तुम्हें मिलने बुलाऊँगी
वो खत भी जला डालूँगी सारे
जिन्हे अब तक भेजा नहीं मैंने
वो संदेश भी मिटा डालूँगी तुम्हारे
जिन्हे अब तक सहेज कर रखा है मैंने
पर एक बात का वादा तुम भी तो कर लो मुझसे
की वो जो टूटा टूटा स है मेरे अंदर
उसे बाहर लाकर तरतीब से जोड़ दोगे क्या ?
मैं तो रातों को जागना छोड़ भी दूँ लेकिन
तुम मेरी यादों मे आना छोड़ दोगे क्या ?
ये मेरे कानों मे क्या बुदबुदा रहे हो तुम
कभी दूर जाकर कभी पास आकर मुझे क्यूँ सता रहे हो तुम
छुपा कर रखा है अब तक तुम्हारा नाम जमाने से
शायद मुझे भी भ्रम है की सपना पूरा नहीं होता बताने से
मेरी साँसों के टूटते लम्हों मे
मेरा ये आखरी भरम तोड़ दोगे क्या ?
मैं तो रातों को जागना छोड़ भी दूँ लेकिन
तुम मेरी यादों मे आना छोड़ दोगे क्या ?