एक प्रगतिशील कवि की धर्म चिंता / मुसाफिर बैठा
कवि को राजनीति के फेर में पड़े
राम की चिंता है
अयोध्या के राम मंदिर की छत के
चूने की चिंता भी है कवि को
चिंता है उसे धर्म बचाने की
विरुद्ध धर्मों से
अपने धर्म को बचाने की बल्कि
इस चिंता में कवि
थोड़ा बुला भला भी कह सकता है
अपनी पसंद की राज पार्टी को
उसके शासन को
ताकि कवि न्याय बुद्धि का लगे
धर्म तटस्थ लगे वह
यानी
अपने होशोहवास में
अपने समस्त लूर लछनों से
कवि पकिया प्रगतिशील लगता है!