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6 Apr 2017 · 1 min read

एक पौधा बिटिया के नाम

जन्म हुआ जब बेटी का तब, इक पौधा लगवाया था ।
मुरझाने भी नहीं दिया था ,बहुत प्यार से पाला था।

हर साल जन्मदिन पर तब से , पौधा नया लगाती थी।
बेटी के सँग-सँग आँगन में ,हरियाली लहराती थी।

हर पौधे की अपनी-अपनी, रोचक नई कहानी थी ।
और नायिका उसकी मेरी, प्यारी बिटिया रानी थी।

साथ समय के चलते -चलते,पौधे बढ़ते चले गए ।
और कदम बेटी के भी तो,गगन चूमते चले गए ।

चली गई ससुराल एक दिन, बेटी भी दुल्हन बन कर ।
उस दिन भी पौधा लगवाया,गुलमोहर मैंने चुन कर।

आज वही पौधे बेटी बन, मेरा साथ निभाते हैं ।
बिटिया के ही जैसे मुझसे, बस बैठे बतियाते हैं ।

घर के हर कोने से बिटिया, तेरी खुशबू आती है ।
फूल हँसाते है मुझको जब ,कभी उदासी छाती है।

डॉ अर्चना गुप्ता

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