एक पौधा बिटिया के नाम
जन्म हुआ जब बेटी का तब, इक पौधा लगवाया था ।
मुरझाने भी नहीं दिया था ,बहुत प्यार से पाला था।
हर साल जन्मदिन पर तब से , पौधा नया लगाती थी।
बेटी के सँग-सँग आँगन में ,हरियाली लहराती थी।
हर पौधे की अपनी-अपनी, रोचक नई कहानी थी ।
और नायिका उसकी मेरी, प्यारी बिटिया रानी थी।
साथ समय के चलते -चलते,पौधे बढ़ते चले गए ।
और कदम बेटी के भी तो,गगन चूमते चले गए ।
चली गई ससुराल एक दिन, बेटी भी दुल्हन बन कर ।
उस दिन भी पौधा लगवाया,गुलमोहर मैंने चुन कर।
आज वही पौधे बेटी बन, मेरा साथ निभाते हैं ।
बिटिया के ही जैसे मुझसे, बस बैठे बतियाते हैं ।
घर के हर कोने से बिटिया, तेरी खुशबू आती है ।
फूल हँसाते है मुझको जब ,कभी उदासी छाती है।
डॉ अर्चना गुप्ता