एक पेड़ का दर्द
धूप सहकर मैं कड़ी, शीतल छांव देता हूं
ठंड वर्षा के थपेड़े, सब झेल लेता हूं
लेता हूं तेरी हर बला, जीवन प्राण देता हूं
देता हूं फल फूल मीठे, छप्पर डाल देता हूं
भोजन में तेरा पकाने, प्राण देता हूं
जीता हूं तेरे लिए, मरता हूं तेरे लिए
तेरी इस जीवन नैया को मनुज, मैं ही चलाता हूं
घर बनाता हूं ,तेरा चूल्हा जलाता हूं
पालना बनता हूं मैं, झूला झुलाता हूं
बनता हूं खटिया पलंग, चैन से मैं सुलाता हूं
बनकर हल बैलगाड़ी, अन्न मैं ही उगाता हूं
जन्म से हूं मरण तक, शव मैं ही जलाता हूं
लगते हैं बरसों बरस, मुझे एक पेड़ बनने में
कितनी बेदर्दी से मुझे, पल में काट देते हो
मैं तो हूं बेजुबान, ये दर्द में किससे कहूं
सदियों से सहता रहा, और कितना मैं सहूं
एक बात सुनलो मेरी, कान अपने खोलकर
अस्तित्व न मेरा मिटाना, जा रहा हूं बोलकर
मेरे बगैर जीवन न होगा, कहता हूं कर जोड़ कर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी