एक पूरी सभ्यता बनाई है
एक पूरी सभ्यता बनाई है, तुम्हारे नाम,
हर एक रास्ता, तुम्हारें ख्यालों की तमाम यात्राएं है।
हर वह जगह इमारतें बनाई, जहाँ भी तुम्हें पाया,
बिल्कुल मन की तरह बनाई है चारों ओर दीवारें।
तमाम यात्राओं का पड़ाव रही है यह दीवारें,
वक़्त बीतने के क्रम में नक़्क़ाशी की गई इन दीवारों में।
इमारतों में भटक जाने का डर, सदा रहा मेरे अंदर,
शायद इसलिए दीवारें खुली रखी, फिर भी मैं कैद रहा।
हर रोज एक सफर में जाता हूँ, वापस न आने को,
मिलों दूर चलने पर, जब याद आते हो, लौट आता हूँ मैं।