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23 Mar 2020 · 1 min read

एक पुराने जख्म को कुरेदना अच्छा लगा

एक पुराने जख्म को, कुरेदना अच्छा लगा,
उसका ना होकर भी, हो जाना अच्छा लगा।

यूं तो तन्हा गुजर रही थी, ज़िंदगी अच्छी मेरी,
फिर भी उससे दिल, लगा लेना अच्छा लगा।

कि लाख नफरत थी, मुझको उसके शहर से भी,
मगर लखनऊ था तो, चले जाना अच्छा लगा।

लाख खुशियां मिल जाए, हमको इक समझौते से,
मगर मुझको दुख में ही,रह लेना अच्छा लगा।

हर रोज़ दर्द देती हैं, आज भी यादें उसकी,
मगर उसके बगैर ही,जी लेना अच्छा लगा।

चाहता तो छिपा लेता,प्यार उसका दिल में,
मगर अब अखबार ही, हो जाना अच्छा लगा।

©अनुराग अंजान

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