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28 Mar 2022 · 2 min read

एक पिता की मृत्यु हो जाने के बाद का यथार्थ

मेरे दोस्त के पिता काफी दिनों से बीमार थे
दो बेटियां थी उनकी और बेटे भी चार थे

बच्चों को एक बाप पालना अखरता था
मां के बाद केवल एक बेटा उन्हें रखता था

साल दर साल समय यूँही व्यतीत हो रहा था
कुछ अच्छा कुछ बुरा था पर ठीक बीत रहा था

लगभग रोज़ाना ही फ़ोन पर बात होती थी
कुछ सामाजिक कुछ पारिवारिक होती थी

पिता जी के स्वास्थ्य से जुड़ी भी होती थी
कुछ मीठी पर ज्यादातर कड़वी होती थी

रोज़ाना की तरह मोबाइल बजे जा रहा था
व्यवस्तता के कारण मैं उठा नही पा रहा था

जैसे ही मैंने पलट कर मित्र को फ़ोन मिलाया
पापा जी का देहांत हो गया है धीरे से बताया

बीमारी के कारण इस पल का पूर्व आभास था
मेरा मित्र अकेला ही था न कोई उसके पास था

धीरे धीरे खबर मिलती रही लोग जुड़ते रहे
सबको सूचना हेतु फोन पे फ़ोन बजते रहे

दूर से आने वालों की भी इन्तज़ार करनी थी
साथ ही शव यात्रा की भी तैयारी करनी थी

लोगों का आना जाना लगातार जारी था
फलां कब तक आएगा पूछना भी जारी था

जो कभी जीवन में a c में नही सोया था
आज मरणोपरांत ही सही a c में सोया था

कुछ हंसते हंसते बतिया रहे थे
कुछ बतियाते हुए हंस रहे थे

समय बीतता रहा संध्या बेला भी आ गयी
सभी लोग आ चुके थे और गमी भी छा गयी

अर्थी भी तैयार थी आंगन में दहलीज के अंदर
पिता जी भी आ गए नव वस्त्रों में कफन ढककर

अपनो ने ही अर्थी पर अपने हाथों से लिटाया
संग खड़े लोगों ने रस्सी से कस कर बंधवाया

बेटों ने कंधों पर जब पिता की अर्थी उठाई थी
ना चाहते हुए भी चारों की आंखें भर आयी थी

राम नाम की गूंज यथार्थ का बखान कर रही थी
पिता की अर्थी कांधे चढ़ दहलीज पार कर रही थी

चल पड़े थे एक नए सफर पर वापिस नही आने को
हंसते हंसते विदा करो तुम इस मुसाफिर को जाने दो

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 306 Views
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