एक पाती बच्ची के नाम :-
फ़ोन जब आया कल शाम
सोच में बीता समय
सो नहीं पाया सारी रात
अवरूद्ध गले से
अस्पष्ट आवाज़ें
हथौड़े सा चोट करती
ख़नकती रही बात
क्या करूँ
समझ के मझ़धार
वर्तमान और भविष्य
दोनों खड़े हो गए
लेकर भीषण आकार
यातना कितनी सहओगी
लौटकर आओगी
घर तुम्हारे, मेरे पास
सिर्फ इस एहसास से
रिश्तों से बड़कर
अपनापन करें कई सवाल
आगे आने वाला जीवन
मेरे मरने के बाद
मेरा परिवार
क्या तुम्हें देगा
इतना ही प्यार
जिसकी थी, और हो
उतनी हकदार
तुम्हें इस हाल पर
छोड़कर भी मैं रहूंगा
बैचन, नाकाम
लिख रहा पाती तेरे नाम
बेटी होती पराई
चिरंतन विवशताई
घर से उठी डोली
बेटी पराई होली
कहना नहीं चाहता
पर कहता
समझौता कर रहो
ससुराल
बहुत मुश्किल पड़ेगी
अगर लौट आयेगी
वैसे मरकर भी
जी लेगी वहाँ
यहां न तुम्हें जीने देगा
न मुझे समाज
हर बात पर उलहाना
चरित्र हनन
मानसिक उत्पीड़न
मैं करूँ तो क्या करूँ
तेरे लिए कैसे खोलुं द्वार
आखिर कर अगर
जी नहीं सकती तो
आना बाबुल के द्वार
दोनों जीयेंगे मर मरकर
जैसे तैसे
पिता-पुत्री का असहाय जीवन
सजन