एक पल,विविध आयाम..!
एक पल,विविध आयाम..!
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सुनो तो, पल की व्यथा,
क्या है, इस पल के विविध आयाम !
सुनो तो,धीरे से जरा..
क्या कह रही है, तेरे कानों मे हौले से।
टिकटिक करती घड़ी,पल गिनगिन ,
दे रही है, कौन सा नया पैगाम…?
क्या है, इस पल के विविध आयाम… !
पल तो एक ही है पर अनुभूति हजारों ,
कैसे सहन होता एक साथ ,
ज़रा गौर से, सोचो और विचारो ।
रस जो महसूस होता है तुझे ,
कोई एक, एक ही पल में।
पर वो पल तो,अपने दामन में समेटे सबरस अनेकों ,
करता है कैसे,अपनी ही आत्मा से भयंकर संग्राम ।
क्या है, इस पल के विविध आयाम… !
कोई जन्म ले रहा होता,भविष्य के सपने संजोये,
जिस पल को।
मौत के आगोश में सिसकता है कोई, ठीक उसी पल को।
कोई शहनाई की मधुर धुन पर थिरकता ,
नवश्रृंगार हेतु जिस पल को ।
कोई करुण रस के अश्रु सागर में डूबा ,
ठीक उसी पल को ।
समझो तो पीड़ा उस दिल की ,
सभी विपरीत प्रवाहों को, जहर को अमृत को भी ,
एक साथ कैसे धारण कर लेता,बनकर अभिराम।
क्या है, इस पल के विविध आयाम… !
महाकाल की संज्ञा, ऐसे नहीं मिल गयी इनको।
जिस पल को हंँसता है, ठहाकों में जी भर के।
ठीक उसी पल को, रोताभी बिलख कर के।
जिस पल को इनका मनमयूर नृत्य करता,
थिरकता कदमताल पर मस्तियों में।
ठीक उसी पल को, भयंकर व्याधि की पीड़ा में,
तड़प रहा होता दिल का एक कोना भी।
सुनकर हर पल, इस पल को कोसने की ,
प्रवृत्ति पर लग गया होगा न, अब तो विराम।
यही तो है, इस पल के विविध आयाम… !
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १३ /०४ /२०२२
चैत,शुक्ल पक्ष,द्वादशी ,बुधवार
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201