एक परिचारिका
सारी दुनिया जब,नींद के आगोश मे सोई रहती हैं
इन सबसे परे तब वो,सेवा भाव मे खोई रहती है
सब त्योहार मेंं घर पर, अपनो संग आनंदित रहते हैं
और वो,छोड़ के दुनियादारी, ईलाज मरीजो का करते हैं
खुद के बच्चे आया संग,दूजे बच्चों पर स्नेह लुटाती है
सच्ची सेवा भावना से,वो एक परिचारिका कहलाती है
गोली दवाई देना हो या,लगाना सुई और बाटल
मरहम पट्टी भी करती है,जब हुआ हो कोई घायल
संग डॉक्टर के,आपरेशन मे भी,हाथ बटाती है
हो गंभीर मरीज गर ,औषधि,झट जीवनरक्षक लगाती है
न पलंग ,न गद्ददा,सारी रात,कुर्सी पर ही,बिताती है
सच्ची सेवा भावना से,वो एक परिचारिका, कहलाती है
चाहे आँधी तूफान हो,बारिश हो या हो तपन
हरदम डटे रहे कर्तव्य पर,जजबे को उसके नमन
चाहे प्रेम भरा व्यवहार हो,या गर्दिश कोई दिखाए
रख संयम, स्वयं पर,शांति भाव से,काम,निपटाये
निस्वार्थ भावना मन मे,सबके दर्द, गले लगाती है
सच्ची सेवा भावना से,वो एक परिचारिका कहलाती है
“रेखा कापसे”
होशंगाबाद, (म.प्र)