एक पत्नि की पाती पति के नाम
बालम तेरे बाग में,आ गया आम पर बौर।
जल्दी आ जाओ,नही आम खायेगा और।।
सावन का महीना है साजन,घटा घिरी घनघोर।
पत्नि तुम्हारी राह जोह रही,जाना कही न और।।
सावन का महीना है,पावन कर रही है शोर।
पतंग अपनी उड़ा लो कही कट न जाए डोर।।
उपवन पूरे यौवन पर,भौरें मंडरा रहे चहुं ओर।
मकरंद वे अब पी रहे,बचेगा नही अब कुछ और।।
दिवाली भी आ गई, दीप जल रहे चहुं ओर।
आ जाओ साजन मेरे,अब देर करो न और।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम