**एक नज़्म::इंजी. आनंद सागर**
********एक नज़्म*******
अब क्या तोहफ़े में दूं तुझको,
जो कुछ था पीछे छूट गया,
ना प्यार रहा ना माफ़ी है,
ये वक्त ये दौलत लूट गया,
हां हैरत के कुछ बादल घिरकर,
पूछ रहे हैं आंखों से,
कि सहरा जैसी आंखों से,
ये सागर कैसे फूट गया,
पर टूटा,जख्मी दिल धीरे से,
शोख अदा से कहता है,
कि मुझको तोड़ने वाले शायद,
तेरा वहम भी टूट गया ll
-सर्वाधिकार सुरक्षित
-इंजी.आनंद सागर