एक निडर इंसान तो बनो।
सोच-सोच कर क्यों कहते हो,
स्पष्ट कहो और सत्य कहो,
क्यों डर-डर कर जीते हो,
खुद में इतना विश्वास रखो,
एक निडर इंसान तो बनो ।….(1)
दबे कुचले तुम नीच नहीं,
गुलामी की अब जंजीर नहीं,
फिर भी दासता सहते रहते हो,
घुट-घुट कर क्यों जीते हो ,
एक निडर इंसान तो बनो ।…(2)
पढ़े-लिखे और समझदार हो,
दहशत में क्यों छुपे हुए हो,
अधिकारों को अपना लो तुम भी,
घर के अंदर क्यों रुके हुए हो,
एक निडर इंसान तो बनो।….(3)
जीवन खुद से भी जी सकते हो,
अपनी इच्छा को पा सकते हो,
हालातों से क्यों सहमें हुए हो,
विचार करो और विचारों से लड़ो,
एक निडर इंसान तो बनो।….(4)
हाथ जोड़ भय से झुक जाते हो ,
हताश होकर क्यों रुक जाते हो,
आंँख से आंँख मिलाकर तो बोल,
इतनी जल्दी पीछे क्यों हट जाते हो,
एक निडर इंसान तो बनो ।….(5)
रचनाकार ✍?
**बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।