एक नयी दिवाली
दीप जलें चारों ओर दिवाली,घर-आँगन जगमग रजनी काली।
मन का अँधियारा भी मिट जाए,हो फिर हर छोर दिशा मतवाली।।
संदेश यही अनुसरण करो तुम,
दीप बनो हरलो सबका तम गम,
जग में होगी हर रोज दिवाली,
प्रेम बढ़ेगा जब हर मन में सम,
छलबल छोड़ो होगी भौर निराली,रात निराली हो बात निराली।
दीपों की अवली-सी हो सुंदर,मानवता की सौग़ात निराली।।
मन की दीवारों को रोशन कर,
अपने-सा औरों को रोशन कर,
तभी दिवाली होगी ये रोशन,
प्रकृति सजे प्यालों को रोशन कर,
पेड़ नदी नाले देख सवाली,पर्यावरण कहे कर रखवाली।
ज़हर न घोल पटाखों से खुश होकर,जीवन बाग खिला बनके माली।।
स्वार्थ मिटा देता है सुख के पल,
इक-दूजे के पूरक सभी न छल,
खुशियाँ किससे बँध पाई हैं रे!
ताक़त पाकर इतना भी न उछल,
साथ चलोगे तो हो खुशहाली,दोनों हाथों से बजती ताली।
एक चना भाड़ नहीं फोड़ सके,समझो बात नहीं कोई जाली।।
रंग मिलें रंगोली बन जाती,
सबके दिल को है कितना भाती,
हम भी बन जाएँ रंगों जैसे,
फिर दुनिया रंगीन नज़र आती,
फूलों से सजती है जब डाली,या आती रात सितारों वाली।
मन हो जाता है प्रफुल्लित घना,ऐसे ही महके जीवन लाली।।
आर.एस.प्रीतम
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