एक दुखियारी माँ
रात के अँधेरे में राह से गुजरते हुए एक माँ को देखा,
दुखियारी माँ की आँखों में आँसुओं को बहते हुए देखा I
एक करुण पुकार :
मेरे आँचल का सौदा करके बहुत मुस्कराते हो,
मेरे आँगन को नीलाम करके खुशियाँ मनाते हो,
मेरे घर आँगन का अपने आपको माली बताते हो,
मेरे तरक्की के सपनों को तार-तार किये जाते हो I
रात के ” अँधेरे में राह ” से गुजरते हुए एक माँ को देखा,
दुखियारी माँ की आँखों में आँसुओं को बहते हुए देखा I
दर्द मुझे इतना न दो कि नीला आसमान रोने लगे,
फरेब न करो इतना कि “ मालिक” सब्र खोने लगे,
झूठ का महल इतना न बड़ा बनाओ कि गिरने लगे,
पंख को इतना न फैलाओ कि हवाएं भी सोचने लगे I
रात के अँधेरे में राह से गुजरते हुए एक माँ को देखा,
दुखियारी माँ की आँखों में आँसुओं को बहते हुए देखा I
मेरी “ मिट्टी ” में पलकर मेरी मिट्टी से सौदा किया,
आख़िर में काम आई मिट्टी और मिट्टी में मिल गया,
राजा,बादशाहों के महल सब यहीं पर धरा रह गया,
लगाई आग अपनों ने पर मेरा आँचल बचा रह गया I
रात के अँधेरे में राह से गुजरते हुए एक माँ को देखा,
दुखियारी माँ की आँखों में आँसुओं को बहते हुए देखा I
“राज” से अब रहा न गया,वो माँ से बस करता सवाल ,
तुम आँखों में गंगाजल लिए बताओ अज्ञानी को नाम ,
एक मृदुभाषी दुखियारी माँ को मेरा कोटि-२ प्रणाम ,
मेरे कानों के पास बोली वो “माँ भारती” है मेरा नाम I
रात के अँधेरे में राह से गुजरते हुए एक माँ को देखा,
दुखियारी माँ की आँखों में आँसुओं को बहते हुए देखा I
देशराज “राज”
कानपुर I