एक दीपक ही अंधेरा निगल जायेगा
बचकर चलते रहो ठोकरें देखकर
जमाना कभी तो बदल जायेगा
कांटे कितने पडे बडी बाधा बने
फिर तो कांटे से कांटा निकल जायेगा
ये अंधेरा घना जानपर आ बना
एक दीपक अंधेरा निगल जायेगा
एक आशा करो राहपर आ चलो
हर पहेली का हल भी निकल आयेगा
विन्ध्य सा बन खिलो नव प्रकाशित करो
वरना अंधेरे का जादू चल जायेगा
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
प्रतापगढ उ प्र
९१९८९८९८३१