बढ़ी शय है मुहब्बत
एक दिन मैंने सोचा
मुहब्बत की किताब
दिल की ज़मी पर खोलू तो जरा
बस क्या था वो ही अक्स सामने आ गया
इक हसीनों जमील पैकर
इक ख़ूबसूरत सा सरापा
जिसका चेहरा महताब
जिसकी आंखे ख्वाब
जिसकी बाते लाजवाब
जिसकी मुस्कराहट में जलवाये -आफताब
जिसकी चाल में बला की तेज़ी
जिस की तबीयत में प्यार बेहिसाब
और. …………………
और जिसके सिर्फ होने ही से लगे
हम तो दुनिया की अमीर शैय है
कसम खुदा की
ये सोच कर ही हल्का सा गुरूर आ गया
इक अनोखा सा खुद पे सुरूर छा गया
और………इसके आगे क्या लिखू
दुनिया की सारी दौलते हैच है तेरे आगे
हम तो बस इसी धुन में जिए जा रहे है
ए मुहब्बत तुझे ही सजदा किए जा रहे है
सुन एय मुहब्बत जिसने तुझे पा लिया
बस यू समझ उसने खुदा पा लिया
ज़माना मेहरबान हो के ना हो
खुदा के घर में तूने घर बना लिया
जिंदगी का प्याला तूने लबरेज कर दिया
तभी तो ए मुहब्बत हमने तुझे दिल मे
अफरोज कर लिया………..shabinaZ