एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
ग़ज़ल
2122/2122/2122/2
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
काटते दिन रात अब उसकी ही यादों में।1
ऐश औ आराम की चिंता नहीं की है,
ज़िंदगी कटती रही बस दो निवालों में।2
गल्तियों पर गल्तियां कीं जो नहीं माने,
दिन ब दिन धंसते गए हैं वो गुनाहों में।3
ज़िंदगी जिंदादिली अब है कहां यारो,
डर सदा फस जाऍं कब दुनियां की चालों में।4
जब से आए जिंदगी में दर्द ही देखा,
जिंदगी ही डूबी सारी गम के प्यालों में।5
ले के वापस फिर न आते भूल जाते सब,
फिर से आये मांगने वो पांच सालों में।6
रूठ कर बैठे थे जो वर्षों से मुझसे दूर,
प्रेम से वो आ गये प्रेमी की बातों में।7
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी