एक दिन की सैर
हम सब यार मिले ।
जंगल की सैर चले ।।
गलियों से यूँ गुजरकर ।
चल दिए पगडंडी पर ।।
नभ में थे बादल छाये ।
राह में भी कीचड़ पाये ।।
कार्तिक मास की शाम ।
जा रहे थे जंगल धाम ।।
पहुँचे हम तालाब पास ।
उगी थी हरी भरी घास ।।
बढ़ते गए किनारे – किनारे ।
खुश थे सब मित्र आज सारे ।।
तालाब भरा था खूब लबालब ।
अठखेलियाँ करते पंछी सब ।।
खोजते खोजते चले राह ।
खुशियों की न थी थाह ।।
कंकर पत्थर लाँघकर ।
पहुँच गए शिलाओं पर ।।
डेढ़ कोस की यह दूरी ।
कर ली हम सबने पूरी ।।
आसपास थे पेड़ो के झुंड ।
पानी से भरा था एक कुंड ।।
तेंदू सीताफल के पेड़ खड़े ।
लगता था जैसे जिद पर अड़े ।।
बह रहा था कलकल ।
झरनों से निर्मल जल ।।
लगे निहारने सब छवि ।
ढलने लगा था अब रवि ।।
लगे बनाने हम सब दाल बाटी ।
उत्तम भोजन कहती मालवा माटी।।
देख देख लगे बादल गरजने ।
छा गया अंधेरा पेड़ थे घने ।।
हर पल का आनन्द लिया ।
सबने भरपेट भोजन किया।।
हाथ से हाथ न सूझ रहा था ।
अंधेरा बहुत ही गहरा था ।।
सबने रखे एक दूजे के हाथ थाम ।
बोल रहे थे जय जय दर्शन धाम ।।
पानी से होकर तरबतर ।
पहुँचे अपने – अपने घर ।।
—जेपीएल