एक दिन का बचपन
एक दिन का बचपन जो फिर से मिल जाए,
मेरा मन झील के ताजा कमल सा खिल जाए।
धूप की चिन्ता न बारिश की परवाह,
लू लगने से बुखार भी जो आ जाए,
स्नेह से ठंडी पट्टी रख माँ,
माथा बार-बार सहलाए.
एक दिन का बचपन… … …।
साथियों संग बनाकर रेल,
खेलें नया कोई खेल,
लूडो-कैरम पर हो लड़ाई,
खेलें मिलकर छुपम-छुपाई,
ठंडी कुल्फी आइसक्रीम,
चुपके से फिर खाऐं.
एक दिन का बचपन… … …।
कॉमिक्सों की दुनिया में घूमें,
और पहाड़े-गिनती भूलें,
हो पढ़ाई से जब कट्टी,
पापा की डांट करे फिर छुट्टी,
दादा छुपा लें बिस्तर में,
दादी नयी कहानी सुनाऐं.
एक दिन का बचपन… … …।
रचनाकार-कंचन खन्ना, मुरादाबाद,
(उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक – २३/०४/२०१७.