एक दिन और
एक दिन और ढल गया ज़िंदगानी का
एक दिन और मौत करीब आई।
एक दिन और बहा कोई पानी
एक दिन और समंदर करीब आया
एक दिन और घट गया इन्तज़ारों का
एक दिन और मन्ज़िल करीब आई
एक दिन और ढल गया ज़िंदगानी का
एक दिन और मौत करीब आई।
एक दिन और बुझा कोई दीपक
शबे हसरत फिर से वीरान हुई
मील पत्थर भी रुके राहों के
मुश्किलें और भी आसान हुईं
सांस की लय भी थम चली अब तो
न ही दिल की सदा नज़र आई
एक दिन और ढल गया ज़िंदगानी का
एक दिन और मौत करीब आई।
चलते रहे यूं ही हम इन राहों में
यादों के दरकते से मज़ारों में
प्यार का गीत न लब से निकल पाया
चेहरे पर थे गिले, शिकवे और रुसवाई
ज़िन्दगी जी न सके और चले मरने को
टूटना जारी रहा मिट न सकी तन्हाई
एक दिन और ढल गया ज़िंदगानी का
एक दी और मौत करीब आई।
विपिन