एक ताजा गज़ल
2122 2122 ( गज़ल ) 2122 212 ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
देश दहला लोग दहले लाशों का अंबार है
कौन करता है यहां नफरत का कारोबार है
मौत का कैसा कहर टूटा है देखो हर तरफ
मौत की चित्कार में अब जिंदगी बेजार है
जिंदगी थम सी गई है कैद में संसार है
मौत फिरती है हवा में कौन जिम्मेदार है
चार कांधे भी मिले ना डर ये कैसा आज है
अपने ही अपनों से भागे रिश्ते सब बेकार है
जाने कैसे कब थमेगा खौफ का ये सिलसिला
इक करिश्में की यहां पर आज फिर दरकार है
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© गौतम जैन ®
हैदराबाद