एक टऽ खरहा एक टऽ मूस
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस,
भिन्सर उइठ कऽ जाय छथि चौक पर,
कौन हवा बहय चहुँओर,
पूरबा-पछिया-उत्तरा-दखिना,
सभकऽ वहीं करथि महसूस,
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस,
सभकऽ आँगन दुआइर घुमै छथि
सभकऽ भीतरका हाल जनै छथि
के खाय छथि छूंछ रोटी,
के पियै छथि गटागट जूस,
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस,
धन वैभव सों पूर्ण गाम अछि,
नौकरी चाकरी घॉरे घॉर
केओ खुऔथिन दिल खोयल कऽ सबदिन,
केओ भेटथिन महाकंजूस,
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस,
बात बनाबैत सब भेट जैथिन,
काम घरी में पाछू हटथिन,
केओ घुमौथिन बात सँ लंदन,
केओ घुमौथिन बेलारूस,
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस,
इधर कऽ बात उधर करै छथि,
सभकऽ आपस में लड़बै छथि,
सभकऽ माथ में दर्द उठल अछि,
देख कऽ हुनकर इ करतूत,
एक टऽ खरहा एक टऽ मूस,
दोनों करै छथि कानाफूस।
मौलिक व स्वरचित
डॉ. श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)