एक टीस
छोड़ आया हूँ गाँव
ज़िन्दगी की ख़्वाहिशों को
पूरा करने के लिए,
धँस गया हूँ पूरी तरह
शहर की भीड़-भाड़ में!
नहीं सुन पाता हूँ अब
रूह की छटपटाहट
और घुटन की सिसकती आह
इन सपनों के आगे!
बहुत सलता है
घर-परिवार से दूर होकर
यहाँ अकेलेपन को
गले लगाना!
और एक टीस बार-बार
उठती है मन में,
कि क्यों कुछ पाने के लिए
कभी-कभी
इतना कुछ खोना पड़ता है?