एक ज्योति प्रेम की…
एक ज्योति प्रेम की मन में रखना,
बाहर दीपों की माला।
प्रेम बिखेरे अंदर खुशियां
बाहर दीपों की माला!
हर-दर, हर-घर, बाहर-भीतर,
उजियारा चहुंओर फैलें।
द्वार-द्वार पर सजे रंगोली,
निर्मल हो जाएं मन मैले।
आनंदित मेल करें मन को,
बाहर दीपों की माला!
राजा हो या रंक का घर,
नव दीप जले सुंदर-सुंदर।
तुलसी के बिरवा के तले,
छज्जे,छत और द्वारों पर।
धर्म-कर्म मन को सुकून दे!
बाहर दीपों की माला…!
@सुस्मिता सिंह ‘काव्यमय’