एक मन जो आधा था
ऐसा भी एक मन था जो आधा रह गया
प्यार में सफ़र का बाकी मेरा इरादा रह गया
मन से मन मिलकर भी बेमन हो गया
बिना निभाये जहां में अधूरा एक वादा रह गया
वो मेरे बारे में कुछ और सोच रही थी
और इधर मेरी जिंदगानी ही कुछ और थी
मोहब्बत में दिल जुड़ता है सुना था
मगर उसके दिल की रवानी कुछ और थी
मैं सरल सब कहता गया एक ओर से
इस बदलते हालात में दिवानी कुछ और थी
मुझे हां सुनने की आदत जो थी हरदम
उसके नहीं से सजी वो कहानी कुछ और थी
इस उधेड़बुन में एक रिश्ता बेरंग सादा रह गया
रिश्तों की आंच में राख ही राख ज्यादा रह गया
मैं बदलना चाहता था उस को इस क़दर
और न बदलने की उसकी जवानी कुछ और थी
मुझे हक चाहिए था पूरा-पूरा उस पर
उसके लिए रिश्तों की चंद निशानी कुछ और थी
सोचता हूं क्या से क्या हो गया अब मैं
इश्क के क़ैद में मेरी वो निगरानी कुछ और थी
इस बात पर छोड़कर चला आया दामन वो
मुझ पर उसकी आधी मेहरबानी कुछ और थी
ये दिल तड़पकर बस ऐसे ही मायूस नादा रह गया
वो मिली नहीं मेरे खाते में मोहब्बत का बुरादा रह गया
बुरादा-चूर्ण
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
वियोग के स्वर के साथ
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.