एक ज़िंदा मुल्क
जुल्मतों के दौर में ही
कोई कौम उभरती है!
शोलों से गुजरकर ही
नई नस्ल संवरती है!!
गर्दिश-ए-अय्याम की
ठोकरें खा-खाकर ही!
एक ज़िंदा मुल्क की
तस्वीर निखरती है!!
Shekhar Chandra Mitra
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