एक ज़माना …
एक ज़माना …
एक ज़माना था जब चिट्ठी-पत्री आती थी,
तब पिय के मन की बात समझ में आती थी।।
एक ज़माना था जब टेलीफोन पर गुफ्तगु होती थी,
तब बात-बात में दिल की कलि खिल जाती थी।।
एक ज़माना था जब दूरदर्शन की खुमारी थी,
तब रामायण व महाभारत की धारावाहिक आती थी।।
एक ज़माना था जब किसानों की चर्चा होती थी,
तब उनकी समस्याएँ घर-घर दिखाई जाती थी।।
एक ज़माना था जब नानी कहानी सुनाती थी,
तब दूर देश की परियों की बात हमको भाती थी।।
एक ज़माना था जब डाकिए की गाँवभर से यारी थी,
तब मनीआर्डर को देखकर माँ फूली नहीं समाती थी।।
एक ज़माना था जब घर से अर्थी उठाई जाती थी,
तब गाँव के हर घर की आँखें नाम हो जाती थी।।
एक ज़माना था जब माँ साकल नहीं लगाती थी,
तब दिन दहाड़े किसी घर की नहीं लुटाई होती थी।।
एक ज़माना था जब आठ आने की दो कुल्फियां आती थी,
तब भाई-भाई में आपस में कभी तकरार न होती थी ।।