एक जवान की पीढ़ा
काटा जो सर दुश्मन ने,
तो जीते थे हम शान से,,
अपनो से जो सिला मिला,
फिर जीना पड़ा अपमान से,,
जिनकी सुरच्छा को सीमा पर,
हम लड़ते अपनी जान पर,,
पड़ा तमाचा मेरे उन,
जीते-जागते अरमान पर,,
होली-ईद छोड़ी हमने,
जिनकी रक्षा के नाम पर,,
सारा मान छोड़ा उन्होंने,
लाकर के अपमान पर,,
मेरी मौत की खबरों पर,
शोक मनाते देश मे,,
न मिली मुझको हमदर्दी,
जीते जागते भेश मे,,
जय हिन्द,जय भारत
(((((ज़ैद बलियावी)))))