एक चुंबन भर
अधरों का वो प्रेम मिलन
खूब मुझे तड़पाता है
जब होता हूँ मौन कभी मैं
याद वही पल आता है
जब अधरों को तेरे
मेरे अधर ने
छूआ था थोड़े हौले से
सांसों के भी आवागमन में
तब हुई गर्माहट हौले से
सच कहूँ….
वो सुखद मिलन
दो रूह नही….
दो आत्म मिलन था
ख्वाबों के खिलते तरूवर में
बासंती फूल मधुर तपन था
दो जिस्म जां एक होने को
प्रिये! वो प्रेम निमंत्रण था
अहा! कितना खूबसूरत…..
समर्पित स्नेह आलिंगन था
पर
जड़ वहां एक बंधन था
हाँ
रीति-रिवाज का मंथन था
हम दोनों
ठहरे, पथिक आदर्श
पथ धूमिल न करने वाला
पुण्य, प्रेम एक मंज़िल जो
मंज़िल अपवित्र न करने वाला
वो चुंबन….
एक चुंबन तक छोड़े
बस, प्रेम मिलन का……
पद चिन्ह छोड़े
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– राहुल कुमार विद्यार्थी
13/02/2020