!! एक चिरईया !!
दूर देश से एक चिरईया
मेरे छत्त पर आती है
आँखों में पानी भर-भर कर
अपनी व्यथा सुनाती है
पटे पड़े हैं ताल तलैया
कैसे प्यास बुझाऊँ मैं
छोटे-छोटे पंख हमारे
कहाँ-कहाँ तक जाऊं मैं
काट दिये सब बाग़ बगीचे
खोता कहाँ लगाऊँ मैं
ऊंचे-ऊंचे महल अटारी
कैसे उसमें जाऊँ मैं
छप्पर वाले घर फिर से
बनवा लो मेरे भैय्या जी
बच्चों संग मैं रहा करूँगी
प्यारे-प्यारे भैय्या जी
सांवा,चावल,चेना,मडुवा
जो कुछ भी रखवा देना
सुबह, सबेरे थोड़ा सा
टब में पानी भरवा देना
फुदक फुदक कर मौज़ करेंगे
“चुन्नू” प्यारे बच्चे मेरे भी
अच्छे दिन सबके आयेंगे
छटेंगे स्याह घनेरे भी —
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)