एक चिड़िया
हां! मैंने उस चिड़िया को देखा ,
कितना दर्द भरा था उसकी आंखों में l
खाना तो था भरपेट खाने का ,
लेकिन वह देख रही उसे उपेक्षित निगाहों से ll
कभी-कभी उसकी चिल्लाने का स्वर बढ़ जाती ,
जैसे कि वह कुछ कहना है चाहती l
लेकिन उसके मालिक को कुछ समझ न आती ,
वह सिर्फ खाना देकर पिंजरे को बंद कर देती ll
कुछ माह पहले की है बात ,
उस चिड़िया को रोज मैं देखती थी एक पेड़ पर l
वह खुशहाली से बिताती थी दिन-रात ,
वह गाना गाती थी उसी पेड़ पर बैठकर ll
उसमें कितनी भिन्नता देखने को मुझे मिली ,
अब फिलहाल तो वह भाग गई है l
पिंजरे का दरवाजा खुला हुआ है,
मैंने सोचा चलो अच्छा ही हुआ हैll
—— उत्तीर्णा धर