“एक चाँद और कुछ सितारें मिला करते हैं”
एक चाँद और कुछ सितारें मिला करते हैं
जब रात को उजालों के सहारें मिला करते हैं
और डूबने वाले को कुछ तो जद्दोजहद करनी होगी
तब जाकर कहीं किसी को, किनारें मिला करते हैं
कहाँ संभल पाता है हर कोई, बिखर जाने के बाद
मगर पतझड़ के बाद ही, बहारों के नजारें मिला करते है
बंद किताबों से चंद सवालों को उठा लाया हूँ
क्योकिं किताबों में जवाब कहाँ, सारे मिला करते हैं
मंजिलें मेरी नजर में रही, मैंने रास्तों की तलाश में उम्र गुजार दी
नसीब -ए- मंजिल अगर मैं हूँ, तभी कुदरत के इशारें मिला करते हैं
वक्त भी पानी सी तासीर लिए बैठा है, जिसे हाथों से कौन पकड़ पाया हैं
मुहब्बत में किताबों को खुला रखा करो, बंद मुट्ठी से कब हाथ हमारे मिला करते हैं
एक चाँद और कुछ सितारें मिला करते हैं
जब रात को उजालों के सहारें मिला करते हैं…………………………………………………
कुमार अखिलेश
देहरादून (उत्तराखण्ड)
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