एक गज़ल
हालात से लड़ा है वो दिखता थका थका
चलता ही जा रहा है वो लेकिन झुका झुका
वो शख्स शक्ल से भी तो दिखता लुटा लुटा
तकदीर से पिटा है वो फिर भी डटा डटा
इस दौर में गरीब कहीं का नहीं रहा
बेबस खड़ा हुआ है वो दिखता पिटा पिटा
हर जंग हारने से बड़ा टूटता गया
मायूस दिख रहा है वो हर दम घुटा घुटा
सरकार के बजट का ये अंजाम देखिए
हर शख्स आज लग रहा बेहद खफा खफा
घर में नहीं है कोई तिजोरी मेरे यहाँ
बैठक में तख्त ही पड़ा वो भी ढका ढका
वो चोर था अजीब मेरे घर में जा घुसा
बैठा है जैसे वो भी हो कोई लुटा लुटा
ये कृष्ण आज और पे इल्जाम क्या धरे
घर के चिराग से ही है ये तो जला जला
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद