एक ग़ज़ल
यार, रिश्तेदार सब हुशियार-बेगाने,नज़र आते हैं,
अब दिलों के बीच में देखें तो थाने नज़र आते हैं ।
खूब उड़ता; नापता है आसमानों को वह दिन भर,
शाम ढलते ही उसे बच्चों के दाने नज़र आते हैं ।
बाप की बातें सभी बेटों को खलने सी लगी हैं यूं ,
उसके सब ख्यालात रुढ़िवादी; पुराने नज़र आते हैं!
दर्द समझा ही नहीं उसने हमारा आज तक यारों,
मेरे तो अश्क़ भी उनको तरानें नज़र आते हैं ।
कौन है जो उतरता है यार दिल के समन्दर में अब,
एक “श्री” को छोड़ कर सारे सयाने नज़र आते हैं ।
-श्रीभगवान बव्वा,
प्रवक्ता अंग्रेजी, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, लुखी, रेवाड़ी ।