एक ग़ज़ल
याद कर के आपको हम रो रहे हैं ,
छल हमेशा ही हमीं से हो रहे हैं ।
फल कभी देंगे नहीं हमको यकीं है ,
बीज फिर भी आरज़ू के बो रहे हैं।
नाच बेहूदा नहीं हो अब यहां पर ,
लाल मेरे भी बड़े अब हो रहें हैं ।
पाक हरदम ही रही है रूह मेरी,
बाद मरने के मुझे भी धो रहें हैं ।
बोल दो उनको नहीं आयें इधर वो,
चैन से आराम से हम सो रहे हैं ।