एक ख्वाब………
न मैने कोशिश की भूल जाने की ,
न उसने किया कभी हमे अपनी यादों से आजाद ।
वैसे तो सबकुछ भूल चुका हुँ मैं ,
हाँ पर कुछ कुछ आ रहा है याद ।
हुई थी दीदार -ए-रुख उनकी ,
थोड़ी बहुत हुई भी थी उनसे बात ।
थे वो बहुत करीब मेरे ,
था मेरे हाथों में उनका हाथ।
अब याद में बस याद है उनके हसीं चेहरे की ……
बाकी सब तो भूल गया ,
या शायद होगा और भी कुछ याद ।
ऐसा नही…. आदत है मुझे सब कुछ भूल जाने की
ऐसा बिककुल भी नहीं कि आदत है मुझे सब कुछ भूल जाने की ,
दरअसल ये हक़ीक़त नही था जानां,
बस था महज़ एक ख्वाब ।।
जो अब ओझल है आंखों से ,
या शायद थोड़ी बहुत होगी याद ।
:- आकिब जमील (कैश )