एक ख्वाब गुज़रा आज बड़े करीब से
एक ख्वाब गुज़रा आज बड़े करीब से,
उनकी झलक मिली हमें बड़े नसीब से।
मुकम्मल हुए हमारे ख्वाब इसी ज़मीन पर,
कि जैसे मिले हैं बरसों बाद अपने हबीब से।
प्यार, एहसास, उम्मीद को लगी है भारी ठेस,
दौलत, रुतबे की मांग की उन्होंने इस गरीब से।
निगाह कहीं पर थीं निशाना कहीं पर,
कि जैसे बातें करते हों अपने रकीब से।
बेईज्ज़ती को भी खुदा का हुक्म माना हमने,
कि जैसे आवाज़ आती हो अज़ान-ए-मगरीब से।
हम तो बस शुक्रिया करके चले आए,
ठुकराया हमें उन्होंने इतनी तहज़ीब से।
————शैंकी भाटिया
अक्टूबर 31, 2016