एक खोज की नारी : डॉ श्वेता फेनिन!
शीर्षक – एक खोज की नारी : डॉ. श्वेता फेनिन !
विधा – संस्मरणात्मक आलेख
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो.रघुनाथगढ़,सीकर राजस्थान 332027
मो. 9001321438
उदार हृदय के लिए सामाजिक और व्यवहारशास्र के मानदंडों को जीवन में भले ही लोग ऊपरी रूप से ओढ़ ले परन्तु ये प्रपंचता लोग अधिक समय तक नहीं बनाये रख सकते। हृदय की उदारता तो जन्मजात नैसर्गिक या आत्मज्ञान से ही आ सकती है। कभी-कभी करूणा के प्रसार या भावों के संस्करण से भी उदात्तता आ जाती है किन्तु इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता है।
लेकिन जन्मजात या नैसर्गिक उदात्तता प्रकृति का अद्भुत उपहार है जिसे प्राप्य है वो पात्र साक्षात प्रकृति का साकार रूप है। ऐसे पात्र के पास आत्मबल,स्वाभिमान और धैर्य का अकूत और अक्षय स्रोत होता है। जिस समाज के पास ऐसे दुर्लभ व्यक्तित्व हो वो समाज कदापि पतित नहीं होता किन्तु एक सामाजिक कटु सत्य यह भी है कि जीवित रहते उस व्यक्ति या पात्र का समाज कभी समादर नहीं करता। उपेक्षा समाज के स्वयं के विनाश का मार्ग है व्यक्ति का क्या…! वो तो हैं ही मृतमार्ग का सारथी लेकिन समाज तो चिरकाल से बना हुआ है।
आज के दौर में कौन है जो सामाजिक बंधनों में बंधकर भी स्वतंत्र है और इसी स्वतंत्रता का समर्थन करता है ?
यदि मैं यह प्रश्न आप सब प्रबुद्धजनों से करूँ तो ?
हो सकता आपके पास कोई दृष्टांत हो,नहीं भी हो। परन्तु यहीं प्रश्न आप मुझसे करो तो मैं बिना देर किए बोल पड़ूँगा …….!…डॉ.श्वेता फेनिन…३..३..
उक्त सारी वैचारिक उद्भावना मेरे मस्तिष्क में इन्हीं आदरणीय की देन है। ऐसा नहीं है कि वो अपने बारे में कह रही है मैं लिखता जा रहा हूँ। उनकों तो पता तक नहीं मैं ये सब लिख रहा हूँ। मैं जो लिख रहा हूँ उनके स्वाभाविक सद्भाव और व्यवहार से प्रभावित होकर भी नहीं लिख रहा। मैं लिख रहा सामाजिक उपयोगिता के आधार पर। इनके बारे में इतना सब कैसे लिख रहा हूँ इतना सोचने की आवश्यकता नहीं है प्रबुद्धजनों! मैं उनके साथ तीन महिनें उनका ड्राइवर बनकर रोज उनके साथ उनके कार्यस्थल तक जाता सुबह-शाम (वो हमें ड्राइवर नहीं समझतें हम ही कह रहे है ऐसा)। वो एक महाविद्यालय(श्रीमती रामकुमारी स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय,मुकुंदगढ़ झुंझुनूं) में राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता है। मैं भी इसी संस्थान में हिंदी पढ़ाता हूँ। और मैं उनके साथ अपनी ‘डुगडुगी(स्कूटी)’ पर यात्रा करता हूँ। यात्रा के समय,महाविद्यालय में उनकों जितना जाना उसी के आधार पर अपने से सब लिख रहा हूँ।
डॉ.श्वेता फेनिन जी प्रशंसा की मोहताज नहीं न ही प्रशंसा के लिए कोई कार्य करती है।
जब व्यक्तित्व के प्रसंग की बात आती है तो लोग अंग्रेज़ी भाषा के पर्सनैलिटी को ध्यान में रखकर ही बात करते है। पर्सनैलिटी शब्द लैटिन शब्द पर्सोना से बना जिसका अर्थ है ‘मुखौटा’। नाटक में मुखौटा वेशभूषा बदलकर अनुकरण करने वालों के लिए इस शब्द का पाश्चात्य देशों में प्रयोग हुआ। आज लोग व्यक्तित्व का अर्थ पर्सनैलिटी से जोड़कर, शरीर का आकार-प्रकार, गठीला बदन, वेशभूषा, बोलचाल आदि ही समझ बैठते है। ये सब तो व्यक्तित्व का केवल एक अंग है। व्यक्तित्व में व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण, उसकी आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत स्थिति, आदत,स्वभाव, रूचि,कार्यक्षमता इत्यादि सब आती है।
व्यक्तित्व के इन सारे मापदंडों से भी आगे है डॉ.श्वेता जी। मेरे जीवन की सबसे बड़ी खोज है ‘डॉ.श्वेता फेनिन जी ‘
इनसे वो सब सीखा जा सकता जो प्रकृति से सीख से सीख सकते है। जीवन के प्रति दृष्टिकोण हो, पारिवारिक और सामाजिक व्यवहार हो,संघर्ष, सहनशीलता, दया,ममता इत्यादि सब इनके निज जीवन में सब स्वाभाविक है। ये स्वाभाविकता ही समाज का मूलभूत आधार है। मैंने इनसे इतना अथाह और असीम ज्ञान ग्रहण किया जिनका इनको पता नहीं।
नारी कर्म के बूते पर ही देवी है परन्तु ये तो महामानवी है। प्रकृति के प्रति इनका असीम विश्वास और अनवरत सहयोग चल रहा है। इनका मानना है प्रकृतिवादियों की रक्षा स्वयं प्रकृति अपने प्रपंचों से कर ही लेती है।
ये बातें पढ़कर इनके पति ‘श्रीमान आर.सिंंह जी’ (रणधीर सिंह) निश्चित ही प्रसन्न होंगे साथ ही ये भी सोचेंगे लिखने वाला कैसा लिख्खाड़ है।
डॉ.फेनिन जी मानती है कि स्त्री की सफलता पुरूष को बाँधकर रखने में नहीं बल्कि बाँधकर मुक्त कर देने में है। बाँधने का खेल खेलने वाली स्त्री स्त्रीत्व मुक्त होती है। नारी बंधन नहीं है नारी मुक्ति का नाम है।
मेरे लिए फेनिन जी एक महज एक नारी नहीं, मेरी खोज की नारी है । मेरी खोज की है इसलिए साधारण तो है नहीं भले ही वे साधारण बनी हो और खोज तो छुपी हुई बातों, वस्तुओं, तत्त्वों की ही होती है।
न जानें कितनी ही फेनिन जी हमारे भारतीय समाज में बिखरी है इन्हीं फेनिनों को खोजकर समाज के समक्ष लाकर समाज का नया मार्गप्रशस्त करना है। फेनिन जी जैसी नारी न केवल नारी है बल्कि ये सम्पूर्ण इकाई है इन्हींं इकाईयों से विस्तृत सामाजिक न्याय समरस भूमि तैयार करनी है। फैनिन जी आज के समाज की आदर्श है। संसद वाली नारी बड़े प्रशासनिक पदों वाली नारी आदर्श नहीं होनी चाहिए। हमारे आदर्श तो हमारे बीच जुड़कर कार्यरत सामान्य महिला ही होनी चाहिए।
बड़े पदों वाली नारी आदर्श नही हो सकती क्योंकि उसके नैतिक मानदंड घूटन भरे होते है और उनका वातावरण दमघोंटू होता है लगने में भले ही वो आदर्श लगे परन्तु उनमे कठोरता और एकाकीपन होता है।
ऐसा नहीं है कि बड़े पदों वाली मृदुभाषी, व्यवहार कुशल, सम्बन्ध निर्वाह क्षमता, कर्त्तव्यनिष्ठता नहीं होती बेशक सब होता है। परन्तु वो अल्हड़पन नहीं होता जो नीरस जीवन में भी रस घोल दे।
फेनिन जी में एक बात विशिष्ट है वो ये कि समय और स्थिति कैसी हो या प्रकारांतरता हो उनके पास हमेशा माता का हृदय रहता है। इन्हीं मातृत्व सुलभ चेष्टाओं और स्नेह से मैं भी लाभान्वित हुआ हूँ आशा है आगे भी होता रहूँ।