एक खुद पसंद ग़ज़ल
एक खुद पसंद ग़ज़ल…
काफ़िया “अर” का स्वर
रदीफ़ देखते रहे
बह्र 221 2121 1221 212
वो जिस पे’ आएं’गे वो’ डगर देखते रहे।
सागर किनारे’ बैठ लहर देखते रहे।1
तेरे बिना कभी अब जी पाएं’ हम नहीं।
हम अपनी’ मुहब्बत का’ असर देखते रहे।2
नज़रें घुमा के’ बैठे’ यहीं कहीं आज वो।
आना जहां से’ था यूं’ उधर देखते रहे।3
डूबे थे’ प्यार में उनके कभी ऐसे’ कुछ।
हम आज भी उसी का’ असर देखते रहे।4
जाना नहीं कभी किस हाल में वो जियें।
हम बस उन्ही की’ रोज़ खबर देखते रहे।5
चाहा किया हमेशा’ तिरे सामने रहूं।
मेरी तरफ न देख किधर देखते रहे।6
घूमा किया करें अब चाहत में’ रोज़ ही।
फिरते हुए किसी की’ नज़र देखते रहे।7
प्रवीण त्रिपाठी
09 दिसंबर 2016