एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,
एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
बहस चली तो लड़ने बैठे वो दोनों अधिवक्ता,
अति अचंभित जज साहब थे क्या दोनों थे वक्ता।
सूझ रहा उपाय न कोई दोनों वक्ता वीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
बोले क्यों लड़ते हैं दोनों ऐसे भी क्यों ज्ञानी,
इतने भारी अधिवक्ता फिर कैसी ये नादानी।
बैठ भी जाएं दोनों भाई ले ले चाय की चुस्की,
इस सलाह पर एक वक्ता ने मारी थोड़ी मुस्की।
और चलाई निज जिह्वा से जहर बुझी सी तीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
कैसे पीऊं चाय मैं साहब मैं मॉडर्न वकील,
और चाय की चुस्की से वो आती ना है फील।
आती ना है फील ये सुनकर बोले दूजे वक्ता,
ना जाने ये कड़वी कौफी क्यों पीते अधिवक्ता।
इससे तो अच्छी है भाई मिठी सी हीं खीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।
देख के दोनों को यूँ लड़ते जज भी हुए अधीर,
बंद करें भी बहस का मुद्दा गलती हुई गंभीर।
अगर न दोनों वक्ता साहब साथ ले सकते चाय।
दोनों पियें ठंडा पानी, यही बचा उपाय।
ये कोर्ट है फ़िर क्यों लड़ते कि जैसे कश्मीर,
भिड़ने को तैयार थे बैठे दो लॉयर गंभीर।